केंद्र सरकार के लिए दलितों पर अत्याचार महज आंकड़ा क्यों है?

आज संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती है. लगभग सभी सरकारें और पार्टियां इस मौके पर बाबा साहब को याद कर रहे हैं. लेकिन समाज की हकीकत देखें तो वंचित वर्ग को न्याय दिलाने की पूरी कल्पना ही अधूरी है या कहें तो ध्वस्त पड़ी है. इसका सबसे बड़ा सबूत दलितों के खिलाफ होने वाले जघन्य अपराध की बढ़ती संख्या है.

संसद के बजट सत्र में राज्य सभा में सांसद एम बी श्रेयम्स कुमार ने यह मुद्दा उठाया. उन्होंने गृह मंत्रालय से पूछा कि क्या देश में वंचित वर्ग की अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की महिलाओं के प्रति बलात्कार जैसे अपराध बढ़ रहे हैं? उन्होंने इसके साथ दो साल का ब्यौरा मांगा. इसके अलावा उन्होंने पूछा कि क्या सरकार ने क्रूरता के ऐसे मामलों में कोई अध्ययन या जांच कराई है, जिनमें अपराधी अक्सर कानून की पंजे से बच निकलते हैं. सांसद एम बी श्रेयम्स ने पूछा कि अगर सरकार ने कोई जांच नहीं कराई है तो इसकी क्या वजह है?

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने संसद में इन सवालों का जवाब दिया. उन्होंने बताया कि संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत कानून-व्यवस्था और पुलिस राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के मुताबिक, कानून-व्यवस्था बनाए रखना, नागरिकों के जान-माल की सुरक्षा करना, अनुसूचित जाति और जनजाति लड़कियों और महिलाओं के प्रति अपराधों की जांच और अभियोजन की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की होती है.

गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि राज्य सरकारें मौजूदा कानूनों के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से निपटने में सक्षम है. हालांकि, उन्होंने कहा कि ऐसे अपराधों में आरोपियों के छूटने का कोई भी अध्ययन राज्यों के ही अधिकार क्षेत्र में आता है.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने कहा कि यह संस्थान राज्यों से मिली सूचनाओं के आधार पर ‘क्राइम इन इंडिया’ नाम से रिपोर्ट बनाता है और उसे प्रकाशित करता है. अब तक 2019 तक की रिपोर्ट उपलब्ध है. इस आधार पर उन्होंने साल 2018 और 2019 के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के साथ बलात्कार के आंकड़े पेश किए.

इसके मुताबिक, 2018 में अनुसूचित जाति की 18 वर्ष की महिलाओं के साथ बलात्कार के सबसे ज्यादा 438 मामले उत्तर प्रदेश में सामने आए. हालांकि, 2019 में राजस्थान सबसे आगे रहा. यहां 2018 में 346 मामले दर्ज हुए, जो 2019 में बढ़कर 491 हो गए. 2019 में उत्तर प्रदेश में 466 मामले सामने आए. यानी अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ बलात्कार में उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा.

पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें- https://sansadnama.com/why-crimes-of-rape-against-sc-st-girls-and-womens-are-increasing/

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