इस देश में एक हजार आदमी पर सिर्फ डेढ़ पुलिस है

बीते साल लॉकडाउन लगने के बाद से आपने सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत से वीडियो देखे होंगे, जिसमें पुलिस असहाय को बड़ी बेरहमी से पीट रही है. इस सिलसिल की हालिया तस्वीर मध्य प्रदेश के इंदौर से आई है, जहां मास्क न पहनने की वजह से पुलिसकर्मियों ने एक व्यक्ति सड़क पर गिराकर पीटा.

आखिर भारत में पुलिस अपनी जनता के साथ ऐसा व्यवहार क्यों करती है? क्यों वह अपराध रोकने और कानून-व्यवस्था को बनाने की जगह खुद अपराधी बन जाती है. इसलिए भारत में पुलिस सुधार एक बड़ा मुद्दा है. इस पुलिस सुधार की आवश्यकता जितनी गुणात्मक (Qualitative) है, उतनी ही संख्यात्मक (Quantitative) है.

राज्य सभा में सांसद राकेश सिन्हा ने पुलिस सुधारों का सवाल उठाया. उन्होंने पूछा कि चार सिपाही प्रति अधिकारी संबंधी पद्मनाभैया समिति की सिफारिशों को लागू करने वाले राज्यों का ब्यौरा क्या है, राज्य सुरक्षा आयोग की स्थापना करने हेतु रिबेरो समिति की सिफारिशों को कितने राज्यों ने लागू किया है?

सांसद राकेश सिन्हा ने यह भी पूछा कि कितने राज्यों ने इसे लागू नहीं किया है और इसका अनुपालन ने करने के कारण क्या हैं, प्रति एक लाख लोगों पर पुलिस कर्मचारियों की संख्या क्या है और क्या यह राष्ट्रीय पुलिस आयोग द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरा उतरता है?

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी सांसद राकेश सिन्हा के सवालों का जवाब दिया उन्होंने बताया कि पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार करने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977), रिबेरो समिति (1998) पद्मनाभैया समिति (2000) और अपराध न्याय पर मलिमथ समिति (2002) गठित की है.

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उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने पुलिस सुधारों पर गठित पिछले आयोगों और समितियों की सिफारिशों की समीक्षा करने के लिए श्री आर एस मूसाहारी की अध्यक्षता में दिसंबर 2004 में एक समीक्षा समिति भी बनाई थी. इस समिति ने मार्च 2005 में अपनी रिपोर्ट सौंपी.

इस समिति ने अर्दली व्यवस्था को बदलने और राज्य सुरक्षा आयोग की स्थापना समेत कुल 49 सिफारिशें की थी. समीक्षा समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजा गया है. उन्होंने अर्दली सिस्टम को हटाने और राज्य सुरक्षा आयोग को लागू करने वाले राज्यों का ब्यौरा भी दिया.

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