डॉ. हर्षवर्धन! कोविड हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर या तो सरकार बीते साल झूठ बोल रही थी या आप अब?

“अब शाम होने वाली थी. पापा उखड़ती हुई सांस में बोले कि मुझे घर ले चलो, अब नहीं बचूंगा, मम्मी और मेरे बच्चों से मिलवा दो. लेकिन मैं नहीं माना. अब मैं और मेरा भाई, जो खुद भी कोविड पॉजिटिव है, करीबी हॉस्पिटल लाल बहादुर शास्त्री हॉस्पिटल आ गए. यहां तक आते-आते मेरे पापा अब बेहोश हो चुके थे. दो घंटो में यहां हमारे सामने कई लोग मर चुके थे. डॉक्टर ने कहा कि इनको लेकर सफदरजंग या राम मनोहर लोहिया अस्पताल जाओ. दिल्ली सरकार की एंबुलेंस बुलाई, जो डेढ़ घंटे तक नहीं आई. फाइनली हमने पापा के लिए जैसे-तैसे एंबुलेंस अरेंज की और आरएमएल की ओर निकल पड़े. नहीं पता था कि ये पापा की ज़िंदगी का आखिरी पड़ाव है…

…हॉस्पिटल में जाने के एक घंटे तक डॉक्टर ने पापा को देखा तक नहीं. फिर उनको ऑक्सीजन पर शिफ्ट कर दिया और मुझे एक पर्चा थमा दिया कि ये पांचवीं मंजिल है, जहां पर बेड मिल जाए तो देख लो. थोड़ी ही देर बाद वो बोले कि पापा को अब इंट्यूबेट (Intubate) करना होगा. लेकिन मैक्सिमम चांस है कि ना बच पाए. पहले एक डॉक्टर ने कोशिश कि जिससे नहीं हो पाया. पापा की दोनों आखों और गले को इंट्यूबेट करने में फाड़ चुके थे. अब सीनियर डॉक्टर आया और उसने पाइप लगा दिया. मैं और मेरा भाई कोविड मरीजों के बीच अपने पापा को 12 घंटों तक गुब्बारे से हवा देते रहे…

…अब सुबह हो चुकी थी. हमारे साथ जो मरीज़ आए थे, उनमें से बहुत सारे मर चुके थे. डॉक्टर ने मेरे पापा की विलपॉवर देख कर कहा कि प्लीज डॉक्टर चढ्ढा, डॉक्टर राना या किसी मिनिस्टर से बात कर लो, आपके पापा बच जाएंगे। मैंने मिनिस्टर हर्षवर्धन जी तक को फ़ोन करवा भी दिया और खुद भी किया. No help.”

ये आपबीती दिल्ली के एक टीवी पत्रकार विक्रांत बंसल की है, जो उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए साझा की है. वे कोविड संक्रमित अपने पिता को लेकर दिल्ली-एनसीआर में 20 से ज्यादा छोटे-बड़े अस्पतालों में गए. लेकिन कहीं भी उन्हें मुकम्मल इलाज नहीं मिल सका. अंत में उनके पिता की उखड़ी सांसों ने उनका साथ छोड़ दिया. इससे आहत विक्रांत बंसल ने अपनी पोस्ट के अंत में लिखा- ‘भगवान से एक ही अनुरोध है या तो सबको पॉलिटीशियन बना दो, नहीं तो सब पॉलिटीशियन को सबक सिखा दो.’

कोरोना महामारी की दूसरी लहर आने के बाद बेबसी की ऐसी कहानियां आपको देश के हर कोने में मिल जाएंगी.  लोग अपने परिजनों का इलाज कराने के लिए अस्पताल दर अस्पताल और शहर दर शहर भटक रहे हैं. लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का दावा है कि सरकार कोरोना महामारी से निपटने के लिए पिछले साल के मुकाबले मानसिक और भौतिक स्तर पर बेहतर तरीके से तैयार है. हालांकि, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि केंद्र सरकार कोविड़ संक्रमितों के इलाज के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के बारे में अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग आंकड़े पेश किए हैं.

मसलन बीते साल संसद के मानसून सत्र में सांसद श्रीनिवास दादासाहेब पाटील और सांसद टीआर बालू को दिए जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया था कि 14 सितंबर, 2020 तक पहले, दूसरे और तीसरे श्रेणी के कोविड समर्पित 15 हजार 372 अस्पताल बनाए गए हैं. इसके अलावा उन्होंने 15 लाख 49 हजार 931 आइसोलेशन बिस्तर, दो लाख 31 हजार 876 ऑक्सीजन सपोर्ट वाले बिस्तर, 62 हजार 979 आईसीयू और 32 हजार 862 वेंटिलेटर्स होने की जानकारी दी थी. यानी 14 सितंबर 2020 तक देश में कोविड मरीजों के लिए कुल 18 लाख 77 हजार 648 बिस्तर मौजूद थे. अगर वेंटिलेटर्स को आईसीयू बेड्स में शामिल मान लिया जाए, जैसा कि कुछ जवाब में सरकार ने कहा है, तो कुल बिस्तरों की संख्या 18 लाख 44 हजार 786 निकलती है.

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टेबल-1

लेकिन आपको जानकार ताज्जुब होगा कि  सरकार ने एक दिन बाद का यानी 15 सितंबर, 2020 तक का जब लोक सभा में आंकड़ा पेश किया तो उसमें बिस्तरों की संख्या अप्रत्याशित रूप से घट गई. सांसद दिलीप शाकिया और रमेश चंद कौशिक को दिए जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया कि डीआरडीओ ने 1000 बेड से लेकर 10 हजार बेड्स की क्षमता वाले फील्ड हॉस्पिटल्स बनाए हैं. (संसदनामा की पड़ताल में यह दावा बेबुनियाद निकला है. पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें)

इसी जवाब में उन्होंने आगे बताया कि ’15 सितंबर, 2020 तक, कोविड मरीजों के इलाज के लिए कुल 15,360 सुविधा केंद्र बनाए गए हैं, जिनमें बिना ऑक्सीजन वाले 13 लाख 20 हजार 881 आइसोलेशन बेड्स, दो लाख 31 हजार 516 ऑक्सीजन सपोर्टेड आइसोलेशन बेड, 63 हजार 194 आईसीयू बिस्तर (32,409 वेंटिलेटर्स सहित) शामिल हैं.’ इस जवाब के मुताबिक, देश में कुल बिस्तरों की कुल संख्या 16 लाख 16 हजार 591 निकलती है, जो एक दिन पहले यानी 14 सितंबर, 2020 तक बताई गई संख्या से लगभग सवा दो लाख कम है. इतना ही नहीं, वेंटिलेटर्स की संख्या भी एक दिन पहले के मुकाबले घट गई. यह कैसे संभव है कि बिस्तरों और वेंटिलेटर्स की संख्या समय बीतने के साथ बढ़ने की जगह पर घट जाए. (देखें- टेबल-1)

पूरा पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें- https://sansadnama.com/was-the-government-lying-before-or-now-dr-harsh-vardhan-on-health-infrastructure/

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